पुनर्मिलन
एक अरसे बाद खुद को, आज मन से याद कर चाहता हूँ झूम जाऊँ , बिछ जाऊँ इन अल्फाज़ पर धुंधले हुए जो हैं फ़साने, क्यों न तुमसे बाँट लूँ यादों के गुलदस्ते से, कुछ फूल तुम संग छाँट लूँ माना मै निष्ठूर हो गया, और बातें हममे कम हुई और नियति के चक्र में, हलकी दरारे पर गई मैं दूर तुमसे हो गया, पर मन तुम्हारा ही रहा अपने छोभ, आवेश में, तुमसे कुछ न कभी कहा पर अब घुटन को भेद कर, अपने डर से हूँ लड़ा जो भी वाज़िब दो सज़ा, सहने को तत्पर हूँ खड़ा इस नई शुरुवात में, मुझको क्षमा का दान दो नीरस पड़े मेरे गीत को, अपनी सुरीली तान दो